Stories Of Premchand

  • Autor: Vários
  • Narrador: Vários
  • Editora: Podcast
  • Duração: 591:59:34
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Sinopse

Stories of Premchand narrated by various artists

Episódios

  • 14: प्रेमचंद की कहानी "भूत" Premchand Story "Bhoot"

    12/02/2018 Duração: 27min

    एक दिन चौबेजी ने बिन्नी को मंगला के सब गहने दे दिये। मंगला का यह अंतिम आदेश था। बिन्नी फूली न समायी। उसने उस दिन खूब बनाव-सिंगार किया। जब संध्या के समय पंडितजी कचहरी से आये, तो वह गहनों से लदी हुई उनके सामने कुछ लजाती और मुस्कराती हुई आकर खड़ी हो गयी। पंडितजी ने सतृष्ण नेत्रों से देखा। विंध्येश्वरी के प्रति अब उनके मन में एक नया भाव अंकुरित हो रहा था। मंगला जब तक जीवित थी, वह उनसे पिता-पुत्री के भाव को सजग और पुष्ट कराती रहती थी। अब मंगला न थी। अतएव वह भाव दिन-दिन शिथिल होता जाता था। मंगला के सामने बिन्नी एक बालिका थी। मंगला की अनुपस्थिति में वह एक रूपवती युवती थी। लेकिन सरल-हृदया बिन्नी को इसकी रत्ती-भर भी खबर न थी कि भैया के भावों में क्या परिवर्तन हो रहा है। उसके लिए वह वही पिता के तुल्य भैया थे। वह पुरुषों के स्वभाव से अनभिज्ञ थी। नारी-चरित्र में अवस्था के साथ मातृत्व का भाव दृढ़ होता जाता है। यहाँ तक कि एक समय ऐसा आता है, जब नारी की दृष्टि में युवक मात्र पुत्र तुल्य हो जाते हैं। उसके मन में विषय-वासना का लेश भी नहीं रह जाता। किन्तु पुरुषों में यह अवस्था कभी नहीं आती ! उनकी कामेन्द्रियाँ क्रियाहीन भले

  • 13: प्रेमचंद की कहानी "मृतक भोज" Premchand Story "Mritak Bhoj"

    07/02/2018 Duração: 40min

    तीसरे दिन सेठ रामनाथ का देहान्त हो गया। धनी के जीने से दु:ख बहुतों को होता है, सुख थोड़ों को। उनके मरने से दु:ख थोड़ों को होता है, सुख बहुतों को। महाब्राह्मणों की मण्डली अलग सुखी है, पण्डितजी अलग खुश हैं, और शायद बिरादरी के लोग भी प्रसन्न हैं; इसलिए कि एक बराबर का आदमी कम हुआ। दिल से एक काँटा दूर हुआ। और पट्टीदारों का तो पूछना ही क्या। अब वह पुरानी कसर निकालेंगे। हृदय को शीतल करने का ऐसा अवसर बहुत दिनों के बाद मिला है। आज पाँचवाँ दिन है। वह विशाल भवन सूना पड़ा है। लड़के न रोते हैं, न हँसते हैं। मन मारे माँ के पास बैठे हैं और विधवा भविष्य की अपार चिन्ताओं के भार से दबी हुई निर्जीव-सी पड़ी है। घर में जो रुपये बच रहे थे, वे दाह-क्रिया की भेंट हो गये और अभी सारे संस्कार बाकी पड़े हैं। भगवान्, कैसे बेड़ा पार लगेगा।

  • 12: प्रेमचंद की कहानी "सती" मानसरोवर ४ Premchand Story "Sati" Mansarovar 4

    06/02/2018 Duração: 18min

    रोग इतनी भयंकरता से बढ़ने लगा कि आवलों में मवाद पड़ गया और उनमें से ऐसी दुर्गन्ध उड़ने लगी कि पास बैठते नाक फटती थी। देहात में जिस प्रकार का उपचार हो सकता था, वह मुलिया करती थी; पर कोई लाभ न होता था और कल्लू की दशा दिन-दिन बिगड़ती जाती थी। उपचार की कसर वह अबला अपनी स्नेहमय सेवा से पूरी करती थी। उस पर गृहस्थी चलाने के लिए अब मेहनत-मजूरी भी करनी पड़ती थी। कल्लू तो अपने किये का फल भोग रहा था। मुलिया अपने कर्तव्य का पालन करने में मरी जा रही थी। अगर कुछ सन्तोष था, तो यह कल्लू का भ्रम उसकी इस तपस्या से भंग होता जाता था। उसे अब विश्वास होने लगा था कि मुलिया अब भी उसी की है। वह अगर किसी तरह अच्छा हो जाता, तो फिर उसे दिल में छिपाकर रखता और उसकी पूजा करता।

  • 11: प्रेमचंद की कहानी "प्रेम का उदय" Premchand Story "Prem Ka Uday"

    05/02/2018 Duração: 24min

    दारोगाजी को अब विश्वास आया कि इस फ़ौलाद को झुकाना मुश्किल है। भोंदू की मुखाकृति से शहीदों का-सा आत्म-समर्पण झलक रहा था। यद्यपि उनके हुक्म की तामील होने लगी, कांस्टेबलों ने भोंदू को एक कोठरी में बंद कर दिया, दो आदमी मिर्चे लाने दौड़े, लेकिन दारोगा की युद्ध-नीति बदल गयी थी। बंटी का हृदय क्षोभ से फटा जाता था। वह जानती थी, चोरी करके एकबाल कर लेना कंजड़ जाति की नीति में महान् लज्जा की बात है; लेकिन क्या यह सचमुच मिर्च की धूनी सुलगा देंगे ? इतना कठोर है इनका हृदय ? सालन बघारने में कभी मिर्च जल जाती है, तो छींकों और खाँसियों के मारे दम निकलने लगता है। जब नाक के पास धूनी सुलगाई जायगी तब तो प्राण ही निकल जायँगे।

  • 10: प्रेमचंद की कहानी "आगा पीछा" Premchand Story "Aaga Peechha"

    04/02/2018 Duração: 43min

    सोलह वर्ष बीत गये। पहले की भोली-भाली श्रृद्धा अब एक सगर्व, शांत, लज्जाशील नवयौवना थी, जिसे देखकर आँखें तृप्त हो जाती थीं। विद्या की उपासिका थी, पर सारे संसार से विमुख। जिनके साथ वह पढ़ती थी वे उससे बात भी न करना चाहती थीं। मातृ-स्नेह के वायुमंडल में पड़कर वह घोर अभिमानिनी हो गई थी। वात्सल्य के वायुमंडल, सखी-सहेलियों के परित्याग, रात-दिन की घोर पढ़ाई और पुस्तकों के एकांतवास से अगर श्रृद्धा को अहंभाव हो आया, तो आश्चर्य की कौन-सी बात है ! उसे किसी से भी बोलने का अधिकार न था। विद्यालय में भले घर की लड़कियाँ उसके सहवास में अपना अपमान समझती थीं। रास्ते में लोग उँगली उठाकर कहते 'क़ोकिला रंडी की लड़की है।' उसका सिर झुक जाता, कपोल क्षण भर के लिए लाल होकर दूसरे ही क्षण फिर चूने की तरह सफेद हो जाते। श्रृद्धा को एकांत से प्रेम था। विवाह को ईश्वरीय कोप समझती थी। यदि कोकिला ने कभी उसकी बात चला दी, तो उसके माथे पर बल पड़ जाते, चमकते हुए लाल चेहरे पर कालिमा छा जाती, आँखों से झर-झर आँसू बहने लगते; कोकिला चुप हो जाती। दोनों के जीवन-आदर्शों में विरोध था। कोकिला समाज के देवता की पुजारिन, श्रृद्धा को समाज से, ईश्वर से और मनुष्य स

  • 9: प्रेमचंद की कहानी "खुचड़" Premchand Story "Khuchad"

    31/01/2018 Duração: 20min

    एक दिन देहात से भैंस का ताजा घी आया। इधर महीनों से बाज़ार का घी खाते-खाते नाक में दम हो रहा था। रामेश्वरी ने उसे खौलाया, उसमें लौंग डाली और कड़ाह से निकालकर एक मटकी में रख दिया। उसकी सोंधी-सोंधी सुगंध से सारा घर महक रहा था। महरी चौका-बर्तन करने आई तो उसने चाहा कि मटकी चौके से उठाकर छींके या आले पर रख दे। पर संयोग की बात, उसने मटकी उठाई, तो वह उसके हाथ से छूटकर गिर पड़ी। सारा घी बह गया। धमाका सुनकर रामेश्वरी दौड़ी, तो महरी खड़ी रो रही थी और मटकी चूर-चूर हो गई थी।

  • 8: प्रेमचंद की कहानी "अभिलाषा" Premchand Story "Abhilasha"

    20/01/2018 Duração: 16min

    हाथ में लेते ही मेरी एक-एक नस में बिजली दौड़ गई। हृदय के सारे तार कंपित हो गये। वह सूखी हुई पंखड़ियाँ, जो अब पीले रंग की हो गई थीं बोलती हुई मालूम होती थीं। उसके सूखे, मुरझाये हुए मुखों के अस्फुटित, कंपित, अनुराग में डूबे शब्द सायँ-सायँ करके निकलते हुए जान पड़ते थे; किंतु वह रत्नजटित, कांति से दमकता हुआ हार स्वर्ण और पत्थरों का एक समूह था, जिसमें प्राण न थे, संज्ञा न थी, मर्म न था। मैंने फिर गुलदस्ते को चूमा, कंठ से लगाया, आर्द्र नेत्रों से सींचा और फिर संदूक में रख आई। आभूषणों से भरा हुआ संदूक भी उस एक स्मृति-चिह्न के सामने तुच्छ था। यह क्या रहस्य था ?

  • 7: प्रेमचंद की कहानी "दरोगाजी" Premchand Story "Darogaji"

    19/01/2018 Duração: 17min

    एक मियाँ साहब लम्बी अचकन पहने, तुर्की टोपी लगाये, तांगे के सामने से निकले। दारोगाजी ने उन्हें देखते ही झुककर सलाम किया और शायद मिज़ाज शरीफ़ पूछना चाहते थे कि उस भले आदमी ने सलाम का जवाब गालियों से देना शुरू किया। जब तांगा कई क़दम आगे निकल आया, तो वह एक पत्थर लेकर तांगे के पीछे दौड़ा। तांगेवाले ने घोड़े को तेज किया। उस भलेमानुस ने भी क़दम तेज किये और पत्थर फेंका। मेरा सिर बाल-बाल बच गया। उसने दूसरा पत्थर उठाया, वह हमारे सामने आकर गिरा। तीसरा पत्थर इतनी ज़ोर से आया कि दारोगाजी के घुटने में बड़ी चोट आयी; पर इतनी देर में तांगा इतनी दूर निकल आया था कि हम पत्थरों की मार से दूर हो गये थे। हाँ, गालियों की मार अभी तक जारी थी। जब तक वह आदमी आँखों से ओझल न हो गया, हम उसे एक हाथ में पत्थर उठाये, गालियाँ बकते हुए देखते रहे

  • 6: प्रेमचंद की कहानी "डिमॉन्सट्रेशन" Premchand Story "Demonstration"

    17/01/2018 Duração: 21min

    सब लोग पाँव-पाँव चलें। वहाँ पहुँचकर किस तरह बातें शुरू होंगी, किस तरह तारीफों के पुल बाँधो जाएंगे, किस तरह ड्रामेटिस्ट साहब को खुश किया जायगा, इस पर बहस होती जाती थी। हम लोग कम्पनी के कैंप में कोई दो बजे पहुँचे। वहाँ मालिक साहब, उनके ऐक्टर, नाटककार सब पहले ही से हमारा इन्तजार कर रहे थे। पान, इलायची, सिगरेट मँगा लिए थे।

  • 5: प्रेमचंद की कहानी "ढपोरसंख" Premchand Story "Dhaporsankh"

    16/01/2018 Duração: 45min

    मेरी श्रृद्धा और बढ़ गई। यह व्यक्ति अब मेरे लिए केवल ड्रामा का चरित्र न था, जिसके सुख से सुखी और दु:ख से दुखी होने पर भी हम दर्शक ही रहते हैं। वह अब मेरे इतने निकट पहुँच गया था, कि उस पर आघात होते देखकर मैं उसकी रक्षा करने को तैयार था, उसे डूबते देखकर पानी में कूदने से भी न हिचकता। मैं बड़ी उत्कंठा से उसके बंबई से आने वाले पत्र का इंतज़ार करने लगा। छठवें दिन पत्र आया। वह बंबई में काम खोज रहा था, लिखा था घबड़ाने की कोई बात नहीं है, मैं सबकुछ झेलने को तैयार हूँ। फिर दो-दो, चार-चार दिन के अन्तर से कई पत्र आये। वह वीरों की भाँति कठिनाइयों के सामने कमर कसे खड़ा था, हालाँकि तीन दिन से उसे भोजन न मिला था।

  • 4: प्रेमचंद की कहानी "दो क़ब्रें" Premchand Story "Do Qabren"

    15/01/2018 Duração: 35min

    रामेन्द्र पर मानो लकवा-सा गिर गया। सिर झुक गया और चेहरे पर कालिमा-सी पुत गई। न मुँह से बोले, न किसी को बैठने का इशारा किया, न वहाँ से हिले। बस मूर्तिवत् खड़े रह गये। एक बाज़ारी औरत से नाता पैदा करने का ख्याल इतना लज्जास्पद था, इतना जघन्य कि उसके सामने सज्जनता भी मौन रह गई। इतना शिष्टाचार भी न कर सके कि सबों को कमरे में ले जाकर बिठा तो देते। आज पहली ही बार उन्हें अपने अध:पतन का अनुभव हुआ। मित्रों की कुटिलता और महिलाओं की उपेक्षा को वह उनका अन्याय समझते थे, अपना अपमान नहीं, लेकिन यह बधावा उनकी अबाध उदारता के लिए भी भारी था। सुलोचना का जिस वातावरण में पालन-पोषण हुआ था, वह एक प्रतिष्ठित हिन्दू कुल का वातावरण था। यह सच है कि अब भी सुलोचना नित्य जुहरा के मजार की परिक्रमा करने जाती थी; मगर जुहरा अब एक पवित्र स्मृति थी, दुनिया की मलिनताओं और कलुषताओं से रहित। गुलनार से नातेदारी और परस्पर का निबाह दूसरी बात थी।

  • 3: प्रेमचंद की कहानी "तगादा" Premchand Story "Tagaadaa"

    14/01/2018 Duração: 19min

    सेठजी की बधिया बैठ गई। इतनी बड़ी रकम उन्होंने उम्र भर इस मद में नहीं खर्च की थी। इतनी-सी दूर के लिए इतना किराया, वह किसी तरह न दे सकते थे। मनुष्य के जीवन में एक ऐसा अवसर भी आता है, जब परिणाम की उसे चिन्ता नहीं रहती। सेठजी के जीवन में यह ऐसा ही अवसर था। अगर आने-दो-आने की बात होती, तो ख़ून का घूँट पीकर दे देते, लेकिन आठ आने के लिए कि जिसका द्विगुण एक कलदार होता है, अगर तू-तू मैं-मैं ही नहीं हाथापाई की भी नौबत आये, तो वह करने को तैयार थे। यह निश्चय करके वह दृढ़ता के साथ बैठे रहे। सहसा सड़क के किनारे एक झोंपड़ा नजर आया।

  • 2: प्रेमचंद की कहानी "सद्गति" Premchand Story "Sadgati"

    13/01/2018 Duração: 19min

    दुखी अपने होश में न था। न-जाने कौन-सी गुप्तशक्ति उसके हाथों को चला रही थी। वह थकान, भूख, कमज़ोरी सब मानो भाग गई। उसे अपने बाहुबल पर स्वयं आश्चर्य हो रहा था। एक-एक चोट वज्र की तरह पड़ती थी। आधा घण्टे तक वह इसी उन्माद की दशा में हाथ चलाता रहा, यहाँ तक कि लकड़ी बीच से फट गई और दुखी के हाथ से कुल्हाड़ी छूटकर गिर पड़ी। इसके साथ वह भी चक्कर खाकर गिर पड़ा। भूखा, प्यासा, थका हुआ शरीर जवाब दे गया।

  • 32: प्रेमचंद की कहानी "दंड" Premchand Story "Dand"

    12/01/2018 Duração: 29min

    प्रेमचंद की कहानी "दंड" Premchand Story "Dand"

  • 31: प्रेमचंद की कहानी "विनोद" Premchand Story "Vinod"

    11/01/2018 Duração: 41min

    प्रेमीजन का धैर्य अपार होता है। निराशा पर निराशा होती है, पर धैर्य हाथ से नहीं छूटता। पंडितजी बेचारे विपुल धन व्यय करने के पश्चात् भी प्रेमिका से सम्भाषण का सौभाग्य न प्राप्त कर सके। प्रेमिका भी विचित्र थी, जो पत्रों में मिसरी की डली घोल देती, मगर प्रत्यक्ष दृष्टिपात भी न करती थी। बेचारे बहुत चाहते थे कि स्वयं ही अग्रसर हों, पर हिम्मत न पड़ती थी। विकट समस्या थी। किंतु इससे भी वह निराश न थे। हवन-संध्या तो छोड़ ही बैठे थे। नये फैशन के बाल कट ही चुके थे। अब बहुधा अँग्रेजी ही बोलते, यद्यपि वह अशुद्ध और भ्रष्ट होती थी। रात को अँग्रेजी मुहावरों की किताब लेकर पाठ की भाँति रटते। नीचे के दरजों में बेचारे ने इतने श्रम से कभी पाठ न याद किया था। उन्हीं रटे हुए मुहावरों को मौके-बे-मौके काम में लाते। दो-चार लूसी के सामने भी अँग्रेजी बघारने लगे, जिससे उनकी योग्यता का परदा और भी खुल गया

  • 30: प्रेमचंद की कहानी "भाड़े का टट्टू" Premchand Story "Bhaade Ka Tattoo"

    09/01/2018 Duração: 31min

    रमेश दस बजे घर पहुँचे तो देखा, पुलिस ने उनका मकान घेर रखा है। इन्हें देखते ही एक अफसर ने वारंट दिखाया। तुरंत घर की तलाशी होने लगी। मालूम नहीं, क्योंकर रमेश के मेज की दराज में एक पिस्तौल निकल आया। फिर क्या था, हाथों में हथकड़ी पड़ गयी। अब किसे उनके डाके में शरीक होने से इनकार हो सकता था ? और भी कितने ही आदमियों पर आफत आयी। सभी प्रमुख नेता चुन लिये गये। मुकदमा चलने लगा। औरों की बात को ईश्वर जाने पर रमेश निरपराध था। इसका उसके पास ऐसा प्रबल प्रमाण था, जिसकी सत्यता से किसी को इनकार न हो सकता था। पर क्या वह इस प्रमाण का उपयोग कर सकता था ?

  • 29: प्रेमचंद की कहानी "बाबाजी का भोग" Premchand Story "Babaji Ka Bhog"

    09/01/2018 Duração: 04min

    स्त्री- बरतन माँज रही थी, और इस घोर चिंता में मग्न थी कि आज भोजन क्या बनेगा, घर में अनाज का एक दाना भी न था। चैत का महीना था। किंतु यहाँ दोपहर ही को अंधकार छा गया था। उपज सारी-की-सारी खलिहान से उठ गयी। आधी महाजन ने ले ली, आधी ज़मींदार के प्यादों ने वसूल की। भूसा बेचा तो बैल के व्यापारी से गला छूटा, बस थोड़ी-सी गाँठ अपने हिस्से में आयी। उसी को पीट-पीटकर एक मन-भर दाना निकाला था। किसी तरह चैत का महीना पार हुआ। अब आगे क्या होगा। क्या बैल खायेंगे, क्या घर के प्राणी खायेंगे, यह ईश्वर ही जाने ! पर द्वार पर साधु आ गया है, उसे निराश कैसे लौटायें, अपने दिल में क्या कहेगा।

  • 28: प्रेमचंद की कहानी "सत्याग्रह" Premchand Story "Satyagrah"

    08/01/2018 Duração: 32min

    पंडितजी इस समय भूमि पर अचेत पड़े हुए थे। रात को कुछ नहीं मिला। दस-पाँच छोटी-छोटी मिठाइयों का क्या ज़िक्र ! दोपहर को कुछ नहीं मिला। और इस वक्त भी भोजन की बेला टल गयी थी। भूख में अब आशा की व्याकुलता नहीं; निराशा की शिथिलता थी। सारे अंग ढीले पड़ गये थे। यहाँ तक कि आँखें भी न खुलती थीं। उन्हें खोलने की बार-बार चेष्टाकरते; पर वे आप-ही-आप बंद हो जातीं। ओंठ सूख गये थे। ज़िंदगी का कोई चिह्न था, तो बस, उनका धीरे-धीरे कराहना। ऐसा संकट उनके ऊपर कभी न पड़ा था। अजीर्ण की शिकायत तो उन्हें महीने में दो-चार बार हो जाती थी, जिसे वह हड़ आदि की फंकियों से शांत कर लिया करते थे; पर अजीर्णावस्था में ऐसा कभी न हुआ था कि उन्होंने भोजन छोड़ दिया हो। नगर-निवासियों को, अमन-सभा को, सरकार को, ईश्वर को, काँग्रेस को और धर्म-पत्नी को जी-भर कर कोस चुके थे। किसी से कोई आशा न थी। अब इतनी शक्ति भी न रही थी कि स्वयं खड़े होकर बाज़ार जा सकें। निश्चय हो गया था कि आज रात को अवश्य प्राण-पखेरू उड़ जायँगे। जीवन-सूत्र कोई रस्सी तो है नहीं कि चाहे जितने झटके दो, टूटने का नाम न ले !

  • 27: प्रेमचंद की कहानी "वज्रपात" Premchand Story "Vajrapaat"

    07/01/2018 Duração: 22min

    दिल्ली का ख़ज़ाना लुट रहा है। शाही महल पर पहरा है। कोई अंदर से बाहर या बाहर से अंदर आ-जा नहीं सकता। बेगमें भी अपने महलों से बाहर बाग़ में निकलने की हिम्मत नहीं कर सकतीं। महज ख़ज़ाने पर ही आफत नहीं आयी हुई है, सोने-चाँदी के बरतनों, बेशकीमत तसवीरों और आराइश की अन्य सामग्रियों पर भी हाथ साफ़ किया जा रहा है। नादिरशाह तख्त पर बैठा हुआ हीरे और जवाहरात के ढेरों को गौर से देख रहा है; पर वह चीज़ नजर नहीं आती, जिसके लिए मुद्दत से उसका चित्त लालायित हो रहा था।

  • 26: प्रेमचंद की कहानी "शतरंज के खिलाड़ी" Premchand Story "Shatranj Ke Khilaadi"

    06/01/2018 Duração: 26min

    मीर साहब की बेगम किसी अज्ञात कारण से मीर साहब का घर से दूर रहना ही उपयुक्त समझती थीं। इसलिए वह उनके शतरंज-प्रेम की कभी आलोचना न करती थीं; बल्कि कभी-कभी मीर साहब को देर हो जाती, तो याद दिला देती थीं। इन कारणों से मीर साहब को भ्रम हो गया था कि मेरी स्त्री अत्यन्त विनयशील और गंभीर है। लेकिन जब दीवानखाने में बिसात बिछने लगी, और मीर साहब दिन-भर घर में रहने लगे, तो बेगम साहबा को बड़ा कष्ट होने लगा। उनकी स्वाधीनता में बाधा पड़ गयी। दिन-भर दरवाज़े पर झाँकने को तरस जातीं।

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